SOB

दोहा ( जफर गोरखपुरी)

तारे छू जुगनू पकड़ रच सपनों के खेल,  रात कितनी उम्र है दिए में जितने तेल। जिस पर्दे में झांके बस एक तेरा रूप,  क्या बादल क्य...
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