तारे छू जुगनू पकड़ रच सपनों के खेल,
रात कितनी उम्र है दिए में जितने तेल।
जिस पर्दे में झांके बस एक तेरा रूप,
क्या बादल क्या बुंदियां क्या सूरज में घुप।
हद से अधिक संजीदगी सच पूछो तो रोग,
आगे पीछे सोचते बूढ़े हो गए लोग।
भूखे भेड़ के जिस्म में बस,
चरवाहे को दूध दे या ताजिर को उन।
जा कर बैठे चार पल किन पेड़ों के पास,
जफर हमारे भाग में शहरों का बनवास।
ले आते बाजार से सुख के लम्हे चंद,
पैसों से मिलता कहीं जो मन का आनंद।
इस्से बढ़कर और क्या रिश्तो की पहचान,
गिरे कुल्हाड़ी पेड़ पर और मैं लहूलुहान।
रात पराया देश का सब सपना बर्बाद,
जुगनू सा चमका करें मां का आशीर्वाद ।
बच्चे टीवी देख कर खुश तो हुए जनाब ,
देख लेकिन इस बात का बेवा हुई किताब। 📚
क्या चिंतन क्या चेतना भोर अपन ना सांझ 🌗😍👫और अपनी कंप्यूटर के काल में सब बंजर सब बांझ।
जफर गोरखपुरी ने यह दोहा लिखा है, और दोहा कहने वाले यह हिंदी के बहुत पुराने शायर हैं, जो गोरखपुर में रहा करते थे जफर गोरखपुरी का जन्म 5 मई 1935 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बरौली बाबू गांव में हुआ और इन्होंने कम उम्र में ही बहुत सारी काबिलियत हासिल कर ली जफर गोरखपुरी ने की अपनी शायरी समझ में दिए जैसे में 30 वाद्य संघ को घर के फूल, चिराग ए चश्मतरा, आर पार का मंजर ,जमीन के करीब , हल्की ठंडी हवा, इनके अलावा ज़फ़र गोरखपुरी बच्चों के लिए भी कि जैसे नाच मेरी गुड़िया, और सच्चाई
सवाल यह भी होता है दोहा किसे कहते हैं तो दोहा हिंदी ज़बान की बहुत ही पुरानी शायरी का एक सीन है यानी शायरी का हिस्सा है नज़्मों का हिस्सा है दोहा उसे कहते हैं ।
दोहे में दो मिसरे होते और हर मिसरे एक वक्त होता है, यानी हर विषय में दो चरण होते हैं ,वक्त से पहले का हिस्सा सम चरण और बाद का हिस्सा वसम चरण कहलाता है। दोहे में रदीफ़ नहीं होती लेकिन हो तो ऐब नहीं है बल्कि एक खुशी है
जफर गोरखपुरी ने यह दोहा लिखा है, और दोहा कहने वाले यह हिंदी के बहुत पुराने शायर हैं, जो गोरखपुर में रहा करते थे जफर गोरखपुरी का जन्म 5 मई 1935 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बरौली बाबू गांव में हुआ और इन्होंने कम उम्र में ही बहुत सारी काबिलियत हासिल कर ली जफर गोरखपुरी ने की अपनी शायरी समझ में दिए जैसे में 30 वाद्य संघ को घर के फूल, चिराग ए चश्मतरा, आर पार का मंजर ,जमीन के करीब , हल्की ठंडी हवा, इनके अलावा ज़फ़र गोरखपुरी बच्चों के लिए भी कि जैसे नाच मेरी गुड़िया, और सच्चाई
सवाल यह भी होता है दोहा किसे कहते हैं तो दोहा हिंदी ज़बान की बहुत ही पुरानी शायरी का एक सीन है यानी शायरी का हिस्सा है नज़्मों का हिस्सा है दोहा उसे कहते हैं ।
दोहे में दो मिसरे होते और हर मिसरे एक वक्त होता है, यानी हर विषय में दो चरण होते हैं ,वक्त से पहले का हिस्सा सम चरण और बाद का हिस्सा वसम चरण कहलाता है। दोहे में रदीफ़ नहीं होती लेकिन हो तो ऐब नहीं है बल्कि एक खुशी है
सवाल यह भी होता है दोहा किसे कहते हैं तो दोहा हिंदी ज़बान की बहुत ही पुरानी शायरी का एक सीन है यानी शायरी का हिस्सा है नज़्मों का हिस्सा है दोहा उसे कहते हैं ।
दोहे में दो मिसरे होते और हर मिसरे एक वक्त होता है, यानी हर विषय में दो चरण होते हैं ,वक्त से पहले का हिस्सा सम चरण और बाद का हिस्सा वसम चरण कहलाता है। दोहे में रदीफ़ नहीं होती लेकिन हो तो ऐब नहीं है बल्कि एक खुशी है
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